CG NEWS : कटघोरा में छत्तीसगढ़ी स्वाद, जनसेवा और संस्कृति का संगम पद्मश्री जागेश्वर यादव जी (बिहोर भाई) के साथ गढ़ कलेवा की दिदियो ने मुख्यमंत्री विष्णु देव साय जी के कटघोरा प्रवास पर उनको छत्तीसगढ़ी व्यंजन महुआ लाडू, तिल लाडू, करी लाडू ,ठेठीरी,खुरमी,बेर रोटी टोकनी में भेंट किया
कोरबा जिले में कटघोरा पूरे एकमात्र गढ़ कलेवा कटघोरा स्थित है, जो आज छत्तीसगढ़ी परंपरागत व्यंजन और जनसेवा का अनोखा उदाहरण बन चुका है। यहां परोसे जा रहे स्थानीय खानपान का स्वाद न केवल आम जनता को भा रहा है, बल्कि अधिकारी, कर्मचारी और आगंतुक भी उत्साहपूर्वक इसका आनंद ले रहे हैं।
गढ़ कलेवा कटघोरा में परोसी जाने वाली थाली लोगों को छत्तीसगढ़ी संस्कृति से जोड़ रही है। यहां फरा, चीला, ठेठरी-खुरमी, अंगाकर रोटी, दाल-भात, चना भाजी और पौष्टिक लड्डू जैसे व्यंजन उपलब्ध हैं। इन पारंपरिक खाद्य पदार्थों की महक और स्वाद हर किसी के दिल को छू रहे हैं।
महिला समूह की मेहनत से चमक रहा गढ़ कलेवा
इस गढ़ कलेवा का संचालन महिला स्व-सहायता समूह की बहनों द्वारा किया जा रहा है। सीमित संसाधनों के बावजूद उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से गढ़ कलेवा को जिले में पहचान दिलाई है। अभी तक वे अस्थायी झोपड़ी और टेंट लगाकर ही भोजन परोसती रही हैं, लेकिन उनका समर्पण देख हर कोई प्रभावित है।
उद्देश्य है जनसेवा और परंपरा का संरक्षण
गढ़ कलेवा केवल स्वाद की थाली नहीं, बल्कि जनसेवा का प्रतीक है। यहां किफायती दरों पर पौष्टिक और पारंपरिक आहार उपलब्ध कराया जाता है। यही कारण है कि यह जिला स्तर पर चर्चा का विषय बन चुका है। लोग इसे छत्तीसगढ़ी संस्कृति के प्रचार-प्रसार और संरक्षण की दिशा में एक मजबूत कदम मान रहे हैं।
सरकार और प्रशासन से अपेक्षा
महिला समूह और स्थानीय लोगों की मांग है कि गढ़ कलेवा को और विकसित करने के लिए प्रशासन स्थायी भवन और सुविधाएं उपलब्ध कराए। यदि सरकारी मदद मिल जाए तो यह गढ़ कलेवा न केवल जिले का गौरव बनेगा, बल्कि रोजगार और महिला सशक्तिकरण का भी बड़ा केंद्र सिद्ध होगा।
खुश है जनता, प्रशंसा कर रहे अधिकारी
गढ़ कलेवा में स्वाद लेने पहुंचे अधिकारियों ने भी महिला समूह की सराहना की है। आम लोगों का कहना है कि जिले का यह एकमात्र गढ़ कलेवा है, जिस पर कोरबा की पहचान बन सकती है। हर थाली के साथ यहां परोसा जा रहा अपनापन और आत्मीयता लोगों के दिल को छू रही है।
गढ़ कलेवा कटघोरा आज पूरे जिले में छत्तीसगढ़ी संस्कृति का असली दूत बन चुका है। यह केवल भोजनालय नहीं, बल्कि जनसेवा, परंपरा और स्वावलंबन का जीवंत उदाहरण है