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शांति प्रिय छ.ग.राज्य में तानाशाही का दौर शुरू; अनुसूचित जाति, जनजाति वर्गों के संवैधानिक अधिकारों की उड़ा रहे हैं धज्जियां — R P Bhatpahari

raipur/ छत्तीसगढ़ राज्य में नई सरकार गठन के महज 6 माह ही बीते हैं, राज्य की 45% अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग के संवैधानिक अधिकारों पर कुठाराघात करने का दौर शुरू हो गया है। यह मामला अनुसूचित जाति और जनजाति वर्गों को मिले संवैधानिक अधिकार पदोन्नति में आरक्षण को लेकर है ।
आज छत्तीसगढ़ शासन राजस्व आपदा प्रबंधन विभाग द्वारा नायब तहसीलदार से तहसीलदार पद पर पदोन्नति सूची जारी की गई है। यह सूची प्रथम दृष्टया बगैर आरक्षण रोस्टर के आधार पर जारी की गई है । यदि हम पूरी सूची को देखेंगे तो सरल क्रमांक 1 से लेकर 31 तक एक भी अनुसूचित जाति जनजाति वर्ग के अधिकारी नहीं है,

जबकि 100 बिंदु आरक्षण रोस्टर के अनुसार सरल क्रमांक 1 से 31 तक अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए रोस्टर में 10 बिंदु एवं अनुसूचित जाति वर्ग के लिए रोस्टर में 4 बिंदु आरक्षित रहती हैं। उक्त पदोन्नति आदेश की कंडिका 4 में लिखा है कि सामान्य प्रशासन विभाग के जारी परिपत्र क्रमांक 20-3/ 2019/1- 3 दिनांक 14/06/2024 द्वारा अवगत कराया गया है कि WP (PIL)91 / 2019 एस संतोष कुमार वर्सेस स्टेट आफ छत्तीसगढ़ एवं WPS 9778 / 2019 विष्णुप्रसन्न तिवारी बनाम छ.ग.शासन एवम अन्य याचिका प्रकरणों में पारित अंतिम निर्णय दिनांक 16/04/ 2024 द्वारा राज्य शासन के द्वारा पदोन्नति में आरक्षण के संबंध में जारी छत्तीसगढ़ लोक सेवा (पदोन्नति) नियम 2003 संशोधन अधिसूचना क्रमांक एफ 4 -1) 2019/1 – 3 दिनांक 22 /10 /2019 एवं परिपत्र दिनांक 30 /10 /2019 को मान्य नहीं किया गया है ,माननीय न्यायालय के उक्त निर्देश के पालन में सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा पूर्व में जारी परिपत्र क्रमांक एफ 20-3/2019 /1 – 3 दिनांक 23 /12 /2019 एवं एवं 17/02/ 2020 निरस्त किया गया है।


इसी कंडिका का उल्लेख करते हुए बगैर आरक्षण की पदोन्नति आदेश सूची जारी कर दी गई है,जिस आदेश का जिक्र कंडिका 4 में किया गया है,यह अपने आप में ही अस्पष्ट है एवम् कंडिका 4 में ही न्यायालय के निर्णय का जिक्र है ।उक्त निर्णय के पैराग्राफ 32 के बारे में क्यों नही लिखा गया।पैराग्राफ 32 में माननीय उच्च न्यायालय छत्तीसगढ़ बिलासपुर ने राज्य सरकार को सुप्रीम कोर्ट के शर्तों के अनुरूप 3 माह के भीतर अर्थात 15जूलाई 2024 तक पदोन्नति नीति को रिफ्रेम कर अधिसूचित करने का निर्देश दिया है।जिसकी समयावधि चार दिन बाद समाप्त हो जायगा । आरक्षण नीति को तो विभाग कोर्ट के आदेश की अवमानना क्यों कर रही है। इसे हम तानाशाही रवैया ही कहेंगे।

अभी तीन माह की समय सीमा खत्म नहीं हुई है। माननीय उच्च न्यायालय द्वारा पदोन्नति में आरक्षण मामले में दिए गए निर्णय का परिपालन करने की आखिरी तिथि 16 जुलाई 2024 है, तो फिर छत्तीसगढ़ शासन के सभी विभाग बिना आरक्षण के पदोन्नति की करने की गलती क्यों कर रहे हैं। हम इसे गलती कहे या जानबूझकर एससी,एसटी वर्गो के अधिकार को खतम करना कहे। जबकि सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा जारी आदेश दिनांक 16 04.2024 केवल माननीय न्यायालय एवं पूर्व में जारी परीपत्रों का संज्ञानार्थ पत्र है।

ऐसा कृत्य शासन प्रशासन द्वारा राज्य के अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग के संवैधानिक अधिकारों को खत्म करने की खुलेआम घोषणा करना प्रतीत हो रहा है। हम मानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने पदोन्नति में आरक्षण नीति को राज्य सरकार का सक्षम बनाने वाला प्रावधान कहा है। लेकिन राज्य सरकार की जिम्मेदारी व जवाबदेही है कि वह भारत के संविधान में उपबंधित आर्टिकल 16(4) क एवं सहपठित आर्टिकल 335 के परिपालन में नीतियां बनाएं।

ज्ञात हो कि माननीय उच्चतम न्यायालय नई दिल्ली ने जरनैल सिंह द्वितीय बनाम लक्ष्मीनारायण गुप्ता के निर्णय दिनांक 31/01 /2022 के फैसले के आने के बाद भारत सरकार कार्मिक विभाग डीओपीटी ने दिनांक 12/04/ 2022 को इस निर्णय का परिपालन कर पदोन्नति आरक्षण देने आदेश जारी किया है ।

यहां स्पष्ट करना चाहेंगे कि पदोन्नति में आरक्षण खत्म नही क्योंकि भारत के संविधान में आर्टिकल 16(4 )क एवम सह पठित आर्टिकल 335 जीवित है,इसकी संवैधानिक वैद्यता को सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने एम नागराज 2006 मामले में बरकरार रखी है। अर्थात पदोन्नति में आरक्षण नीति कानून सम्मत है।

यदि छत्तीसगढ़ सरकार राज्य के एससी एसटी वर्ग को पदोन्नति में आरक्षण नहीं देना चाहती है तो स्पष्ट तौर पर शासन आदेश जारी करें कि हम राज्य के एससी एसटी वर्ग को पदोन्नति में आरक्षण नही देना चाहते। हम भी देखेंगे कि शासन कैसे खुलेआम पदोन्नति आरक्षण नीति को दरकिनार करती है, लेकिन छत्तीसगढ़ में जिस तरह से अघोषित रूप से पदोन्नति में आरक्षण को दरकिनार कर बगैर आरक्षण के पदोन्नति देने का शुरुआत की जा रही है। यह सीधा राज्य के 45% अनुसूचित जाति जनजाति वर्ग के संवैधानिक अधिकारों पर कुठाराघात है।जबकि हम छत्तीसगढ़ राज्य में मेजोरिटी में है। राज्य की विधानसभा में 37 एससी,एसटी वर्ग जनप्रतिनिधि है। सूबे का मुख्यमंत्री खुद एसटी वर्ग से है,तीन केबिनेट मिनिस्टर एससी,एसटी वर्ग से है।


ऐसा नहीं है कि इस मामले की जानकारी राज्य के मुखिया माननीय मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय जी को नहीं है। माननीय मुख्यमंत्री जी संज्ञान में लेकर पदोन्नति मे आरक्षण प्रदान करने आश्वासन दिया गया है फिर भी आदेश जारी नहीं हुआ है।एससी एसटी वर्ग की अधिकारी कर्मचारी संगठनों की संयुक्त मोर्चा के द्वारा तथा सतनामी समाज के मुख्य संगठन ,प्रगतिशील छत्तीसगढ़ सतनामी समाज का प्रतिनिधि मंडल प्रदेश अध्यक्ष श्री राजेन्द्र प्रसाद भतपहरी जी और प्रदेश संरक्षक श्री विनोद भारती जी के नेतृत्व मे प्रदेश पदाधिकारियों का टीम संयुक्त रूप से भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष श्री किरण सिंह देव जी,क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जामवाल जी प्रदेश संगठन महामंत्री श्री पवन साय जी के अलावा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के उच्च पदस्थ नेताओं को भी इस मामले को लेकर मुलाकात कर पदोन्नति मे आरक्षण प्रदान करने चर्चा कर चुकी है। सरकार के तीन कैबिनेट मंत्री माननीय दयाल दास बघेल जी, माननीय रामविचार नेताम जी, माननीय केदार कश्यप जी से मिलकर सारी बातों को स्पष्ट बताया जा चुका है। यहां तक की वर्तमान सरकार के सांगठनिक ढांचे में अनुसूचित जाति के प्रदेश अध्यक्ष एवं पूर्व विधायक श्री नवीन मार्कंडेय जी एवं अनुसूचित जनजाति मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष श्री विकास मरकाम जी महोदय से भी भेंट कर मामले को बताया गया है।तथा सम्पूर्ण पदोन्नति प्रक्रिया को नये नियम बनते तक स्थगित करने का मांग किया गया है ,लेकिन अब तक कोई पहल नही हुई। परंतु बगैर आरक्षण पदोन्नति की शुरुआत हो गई।


अफसोस इस बात का है कि पिछले दो माह से मुख्यमंत्री निवास,कैबिनेट मंत्री निवास के कई बार चक्कर काटने के बावजूद आज पर्यंत तक राज्य के अनुसूचित जाति जनजाति वर्ग के पदोन्नति में आरक्षण मामले में कोई राहत नहीं मिली है। राज्य के बहुसंख्यक एससी,एसटी वर्ग के लिए इससे बड़ी और क्या दुर्दशा वाली बात होगी कि राज्य के मुख्यमंत्री आदिवासी वर्ग से भाजपा संगठन महामंत्री आदिवासी वर्ग से हैं तथा बहुसंख्यक विधायक आदिवासी वर्ग से होकर भी एसटी वर्ग के 32% पदोन्नति में आरक्षण नीति को परिपालन नहीं करा पा रही है। यदि राज्य के एससी एसटी वर्ग आंदोलन का रास्ता तैयार करते हैं तो यही सरकार और मीडिया इन वर्गों को गलत ठहराएगी। यदि एससी एसटी वर्ग के अधिकारों को कुचला जाएगा तो क्या राज्य के अनुसूचित जाति, जनजाति वर्ग घर में बैठकर तमाशा देखेंगे।

इधर राज्य की 32% जनजाति वर्ग के शासकीय सेवकों का प्रतिनिधित्व करने वाली संगठन छत्तीसगढ़ अनुसूचित जनजाति शासकीय सेवक संघ ने 26 जुलाई को आंदोलन का आहवान कर दिया है,अब देखना है कि इसकी आवाज कहां तक जाएगी ।
दुसरी तरफ छत्तीसगढ़ शासन राजस्व आपदा प्रबंधन विभाग नायब तहसीलदार से तहसीलदार पद के लिए पदोन्नति आदेश जारी की गई है। इस आदेश के खिलाफ भी अनुसूचित जाति,जनजाति वर्ग का अधिकारी कर्मचारी संगठनों द्वारा अवमानना दाखिल करने पर विचार कर सकती हैं

राज्य सरकार चाहे तो 15 दिन के भीतर अनुसूचित जाति, जनजाति वर्ग की कैडर वाइज डाटा एकत्र कर छत्तीसगढ़ लोक सेवा(पदोन्नति) नियम 2003 की नए नियम 5 को प्रतिस्थापित कर अधिसूचित कर सकती है, लेकिन राज्य सरकार की तरफ से अब तक इस मामले में कोई ठोस निर्णय नहीं आया है।
जिसके कारण छत्तीसगढ़ के अनुसूचित जाति, अनुसूचित जाति समाज के विभिन्न संगठनों और अधिकारी कर्मचारी संगठनों के संयुक्त तत्वावधान मे अपने अधिकार को हासिल करने के लिए सरकार के खिलाफ संवैधानिक तरिके से और चरणबद्ध तरीके से कठोर जन आंदोलन करने पर मजबूर होंगे,
जिसके जिम्मेदार शासन प्रशासन की होगी ।

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