छत्तीसगढ़ में छोटी दीपावली यानि देवउठनी एकादशी का व्रत आज रखा जाएगा. 12 नवंबर को रवि योग और सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है. देवउठनी एकादशी में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. लोग व्रत रखते हैं. वही एक दिन पहले ही सोमवार को शहर का पूरा मार्केट गन्ना, कोचई, चनाभाजी, बेर, सिंघाड़ा, शकरकंद, आंवला, केला, सेव, अनार, मुसब्बी, संतरा, फूल माला, कमल फूल, गेंदा फूल और तरह-तरह की पूजा सामग्रियों से सज गया है। देवउठनी एकादशी की व्रत कथा सुनते हैं. पौराणिक और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस शुभ अवसर पर विष्णु भगवान चार महीने की योग निद्रा से जागते हैं और पुन: से सृष्टि की व्यवस्थाओं को संभालते हैं. सबसे महत्वपूर्ण बात तो ये है कि कल ही देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह भी है. ऐसे में देवउठनी एकादशी पर तुलसी जी की भी पूजा की जाती है. साथ ही तुलसी मां के कुछ उपाय करने से शुभ फल की प्राप्ति भी होती है.
एकादशी शुभ मुहूर्त-
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 11 नवंबर यानी आज शाम 6 बजकर 46 मिनट से शुरू होने वाली है. इसका समापन कल 12 नवंबर को शाम में 4 बजकर 4 मिनट पर होगा.
विवाह का दिन
12 नवंबर को साल की सबसे बड़ी एकादशी है, देवउठनी एकादशी. इसी दिन तुलसी जी के विवाह का भी शुभ मुहूर्त होता है. ऐसे में ये तुलसी जी का भी दिन है. आप विष्णु भगवान की पूजा करने के साथ ही मां तुलसी की भी पूजा अवश्य करें. मां तुलसी का विवाह कराने से घर में सुख-समृद्धि, अखंड सौभाग्य आता है. तुलसी विवाह के शुभ मौके पर तुलसी जी से संबंधित नीचे बताए गए 5 उपाय अवश्य करें.
1 तुलसी मां की पूजा करते समय लाल कलावा जरूर बांधें.
- तुलसी जी को लाल चुनरी अवश्य बांधें और पूजा करें
३ तुलसी मइया को पीले धागे में 11 गांठ लगाकर अवश्य बांधे और उनसे प्रार्थना जरूर करें.
- तुलसी जी की पूजा करते समय कच्चा दूध जरूर अर्पित करें और दीपक जलाकर उनकी आरती करें.
- देवउठनी एकादशी के दिन कृष्ण भगवान को 11 तुलसी के पत्र अवश्य चढ़ाएं.
तुलसी विवाह की संपूर्ण विधि
- देवउठनी एकादशी के दिन जो लोग तुलसी विवाह करते हैं जिन्हें कन्यादान करना होता है उन्हें इस दिन व्रत जरूर करना चाहिए।
- इसके बाद शालिग्राम की तरफ से पुरुष वर्ग और तुलसी माता की तरफ से महिलाओं को इकट्ठा होना होता है।
- शाम के समय दोनों पक्ष तैयार होकर विवाह के लिए एकत्रित होते हैं।
- तुलसी विवाह के लिए सबसे पहले अपने घर के आंगन में चौक सजाया जाता है। फिर रंगोली बनाई जाती है उसपर चौकी स्थापित की जाती है।
- इसके बाद तुलसी के पौधे को बीच में रखें। तुलसी माता को अच्छी से तैयार करें। उन्हें लाल रंग की चुनरी, साड़ी या लहंगा पहनाएं चूड़ियां आदि से उनका श्रृंगार करें।
- जहां तुलसी माता को विराजमान किया हैं वहां पर गन्ने से मंडप बनाएं।
- इसके बाद अष्टदल कमल बनाकर चौकी पर शालिग्राम को स्थापित करके उनका श्रृंगार करें।
- फिर कलश की स्थापना करें। सबसे पहले कलश में पानी भर लें उसमें कुछ बूंद गंगाजल की मिलाएं। फिर आम को 5 पत्ते रखें और उसके ऊपर नारियल को लाल रंग के कपड़े में लपेटकर कलश पर स्थापित करें।
- फिर एक चौकी पर शालिग्राम रकें। शालिग्राम को तुलसी के दाएं तरफ रखना है।
- फिर घी का दीपक जलाएं और ओम श्री तुलस्यै नम: मंत्र का जप करें। शालिग्राम और माता तुलसी पर गंगाजल का छिड़काव करें।
- इसके बाद शालिग्राम जी पर दूध और चंदन मिलाकर तिलक करें और माता तुलसी को रोली का तिलक करें।
- इसके बाद पूजन सामग्री जैसे फूल आदि सब शालिग्राम और तुलसी माता को अर्पित करें।
- इसके बाद पुरुष शालिग्राम जी को अपनी गोद में उठा लें और महिला माता तुलसी को उठा लें। फिर तुलसी की 7 बार परिक्रमा कराएं। इस दौरान बाकी सभी लोग मंगल गीत गाए और कुछ लोग विवाह के विशेष मंत्रों का उच्चारण करें। मंत्रों के उच्चारण में कोई गलती नहीं होनी चाहिए।
- अंत में दोनों को खीर पूड़ी का भोग लगाएं। अंत में माता तुलसी और भगवान शालिग्राम की आरती उतारें। फिर अंत में सभी लोगों को प्रसाद वितरित करें।