श्रावण कृष्ण पक्ष अमावस्या को हरेली त्योहार मनाया जाता है। ज्यादातर जुलाई के महीने में यह त्यौहार पड़ता है। पानी बरसने के बाद खेतों में फसल हरी-भरी हो जाती है तब यह त्यौहार मनाते हैं। इस वर्ष हरेली त्यौहार 4 अगस्त 2024 को मनाया जाएगा। हरेली तिहार पर किसान नागर, गैंती, कुदाली, फावड़ा समेत कृषि में काम आने वाले औजारों की साफ-सफाई करते हैं। इस अवसर पर घरों में गुड़ का चीला बनाया जाता है। बैल, गाय व भैंस को बीमारी से बचाने के लिए बगरंडा और नमक खिलाने की परपंरा है। हरेली तिहार पर कुल देवता व कृषि औजारों की पूजा करने के बाद किसान अच्छी फसल की कामना करते हैं।
http://गांवों में सुबह से उत्सव का माहौल रहता है
ग्रामीण क्षेत्रों में सुबह से शाम तक उत्सव जैसी धूम रहती है. इस दिन बैल, भैंस और गाय को बीमारी से बचाने के लिए बगरंडा और नमक खिलाने की परंपरा है. लिहाजा, गांव में यादव समाज के लोग सुबह से ही सभी घरों में जाकर गाय, बैल और भैंसों को नमक और बगरंडा की पत्ती खिलाते हैं. इस दिन यादव समाज के लोगों को भी स्वेच्छा से दाल, चावल, सब्जी और अन्य उपहार दिए जाते हैं.
गांव में कई तरह के प्रतियोगिता होती है
हरेली पर्व में गांव और शहरों में नारियल फेंक प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाता है. सुबह पूजा-अर्चना के बाद गांव के चौक-चौराहों पर युवाओं की टोली जुटती है और नारियल फेंक प्रतियोगिता खेली जाती है. नारियल हारने और जीतने का यह सिलसिला देर रात तक चलता है. इसी तरह नारियल जीत की धूम शहरों में भी होती है।
घरों के बाहर नीम के पत्ते लगाए जाते हैं
यह भी माना जाता है कि श्रावण कृष्ण पक्ष की अमावस्या यानी हरेली के दिन से तंत्र विद्या की शिक्षा देने की शुरुआत की जाती है. इसी दिन से प्रदेश में लोकहित की दृष्टि से जिज्ञासु शिष्यों को पीलिया, विष उतारने, नजर से बचाने, महामारी और बाहरी हवा से बचाने समेत कई तरह की समस्याओं से बचाने के लिए मंत्र सिखाया जाता है. हरेली के दिन गांव-गांव में लोहारों की पूछ परख बढ़ जाती है. इस दिन लोहार हर घर के मुख्य द्वार पर नीम की पत्ती लगाकर और चौखट में कील ठोंककर आशीर्वाद देते हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से उस घर में रहने वालों की अनिष्ट से रक्षा होती है. इसके बदले में किसान उन्हें दान स्वरूप स्वेच्छा से दाल, चावल, सब्जी और नगद राशि देते हैं।
रेली में जहां किसान कृषि उपकरणों की पूजा कर पकवानों का आनंद लेते हैं. वहीं युवा और बच्चे गेड़ी चढ़ने का मजा लेते है. लिहाजा सुबह से ही घरों में गेड़ी बनाने का काम शुरू हो जाता है. ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है, जो इस दिन 20 से 25 फीट ऊंची गेड़ी बनवाते हैं।
इस दिन किसान अपने खेतों में कार्य नहीं
अमावस्या के दिन खेती का कार्य करना वर्जित है। इसलिए इस दिन कोई भी किसान अपने खेतों में कार्य नहीं करते हैं। हरेली त्यौहार को गेड़ी चढ़ने का त्यौहार भी कहा जाता है। क्योंकि इस दिन लोग बांस की लकड़ी से गेड़ी बनाकर गेड़ी चढ़ते हैं। गेड़ी चढ़ने का आनंद ही अलग है लोग इस दिन गेड़ी चढ़कर आनंद उत्सव मनाते हैं। इस दिन पुजारी बैगा को अन्न भेंट किया जाता है। हरेली अमावस्या को गांव के पुजारी बैगा घर-घर जाकर दशमूल पौधा एवं भिलवा पत्ते आदि को घर के मुख्य दरवाजे पर बांधते हैं।
हरेली का अर्थ होता है हरियाली. इस दिन छत्तीसगढ़ वासी पूजा अर्चना कर पूरे विश्व में हरियाली छाई रहने की कामना करते हैं. उनकी कामना होती है कि विश्व में हमेशा सुख शांति बनी रहे. इस त्यौहार को इन्हीं कामनाओं के साथ अच्छे से पवित्र मन के साथ मनाया जाता है।