BREAKING

स्वास्थ

विश्व सिकल सेल रोग दिवसः फोर्टिस गुरुग्राम के डॉक्टरों ने रायपुर में जागरूकता कार्यक्रम का किया आयोजन

रायपुर: सिकल सेल रोग (एससीडी) भारत में आम जन को प्रभावित करने वाली एक प्रमुख स्वास्थ्य चुनौती है, जो खासतौर से जनजातीय (ट्राइबल) आबादी को प्रभावित करती है। दुनियाभर में, एससीडी विकार के साथ जन्म लेने वाले बच्चों की सर्वाधिक संख्या भारत मेंदर्ज की जाती है और हर साल यहां लगभग 15,000 से 25,000 बच्चे इस विकार के साथ पैदा होते हैं। उल्लेखनीय है किसिकल सेल रोग जनजातीय आबादी को काफी प्रभावित करता है और इसकी वजह से आबादी के इस समूह में रोगों और मृत्यु के मामले भी अधिक होते हैं। इस रोग के कारण एनीमिया, शारीरिक पीड़ा, अंगों को नुकसान पहुंचने के साथ-साथ जीवन प्रत्याशा में भी कमी आती है।

सिकल सेल रोग (एससीडी) की गंभीर चुनौती से निपटने के उद्देश्य से, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम ने आज रायपुर, छत्तीसगढ़ में जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया। कार्यक्रम के दौरान, सिकल सेल रोग को वैश्विक स्वास्थ्य चुनौती के तौर पर स्वीकार करने और इसके उन्मूलन के लिए रणनीति तैयार करने पर जोर दिया गया। डॉ विकास दुआ, प्रिंसीपल डायरेक्टरएवं हेड – पिडियाट्रिक हेमेटोलॉजी, हेमेटो-ओंकोलॉजी, एंड बोन मैरो ट्रांसप्लांट (बीएमटी), फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम के नेतृत्व में, सिकल सेल रोग के प्रभावों, खासतौर से भारत की ट्राइबल आबादी और अन्य हाइ-रिस्क आबादी समूहों पर इसके असर को रेखांकित किया गया।

मीडिया के साथ बातचीत में, डॉ दुआ ने सिकल सेल रोग के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर के बारे में जानकारी देने के साथ-साथ उपचार के उन्नत विकल्पों तथा पात्र मरीजों के लिए बोन मैरो ट्रांसप्लांट की उपचारी क्षमता के बारे में भी बताया। उन्होंने एम्स रायपुर में आयोजित स्पेशल एचएलए टाइपिंग कैंप में भी भाग लियाजिसका आयोजन जेनेटिक स्क्रीनिंग और डोनर मैचिंग, जो कि सिकल सेल से पीड़ित रोगियों की स्थिति में सुधार लाने के लिए महत्वपूर्ण कदम है, को बढ़ावा देने के लिए किया गया था।

इस मौके पर, संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए, डॉ विकास दुआ, प्रिंसीपल डायरेक्टरएवं हेड – पिडियाट्रिक हेमेटोलॉजी, हेमेटो-ओंकोलॉजी, एंड बोन मैरो ट्रांसप्लांट (बीएमटी), फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट,गुरुग्राम ने कहा, “भारत में सिकल सेल रोगियों की दूसरी सर्वाधिक आबादी निवास करती है। देश में सिकल सेल एनीमिया से लड़ाई के खिलाफ सबसे बड़ी बाधा आम आबादी के बीच जागरूकता का अभाव है। सिकल सेल रोग के शुरुआती लक्षणों की पहचान करना समय पर हस्तक्षेप और प्रबंधन के लिए जरूरी हैं, लेकिन आमतौर पर जानकारी न होने की वजह से ऐसा नहीं हो पाता। शुरुआती लक्षण, अक्सर 5-6 माह की उम्र में दिखायी देते हैं, जिनमें हाथ-पैरों में दर्द के साथ सूजन, थकान और पीलिया (जॉन्डिस) प्रमुख हैं। लेकिन कई लोगों को काफी उम्र बीत जाने तक भी अपनी कंडीशन समझ में नहीं आती, और यही वजह है कि इस बारे में जागरूकता बढ़ाना और स्क्रीनिंग कार्यक्रमों का आयोजन करना काफी महत्वपूर्ण कदम है। यदि मौजूदा पीढ़ी में इस रोग से बचाव हो सके, तो इसे अगली पीढ़ी तक पहुंचने से रोका जा सकता है। इसके लिए मुख्य रणनीति है बड़े पैमाने पर स्क्रीनिंग प्रोग्राम चलाना, जिनमें नवजातों की सक्रीनिंग और प्रसवपूर्व स्क्रीनिंग से लेकर सिकल सेल रोग (एससीडी) और सिकल सेल ट्रेट (एससीटी) से ग्रस्त लोगों की शुरूआत में ही पहचान करना शामिल है। साथ ही, एससीडी के संभावित उपचार के तौर पर पात्र बच्चों एवं युवा वयस्कों का बोन मैरो ट्रांसप्लांट भी एक महत्वपूर्ण विकल्प हो सकता है। कुल-मिलाकर, जल्द से जल्द डायग्नॉसिस, जेनेटिक स्क्रीनिंग, और एचएलए टाइपिंग महत्वपूर्ण है जिससे समय पर प्रभावी उपचार सुनिश्चित होता है।”

सिकल सेल रोग गंभीर स्वास्थ्य समस्या है जो भारत में लाखों लोगों को प्रभावित करती है। यह रोग गुजरात, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, ओडिशा और बंगाल के कुछ हिस्सों में सामान्य है, जबकि तमिलनाडु, केरल, दक्षिण और तेलंगाना के कुछ हिस्से भी इससे प्रभावित हैं। इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च के मुताबिक, भारत करीब 20 मिलियन की आबादी सिकल सेल रोग से पीड़ित है लेकिन इसके आनुवांशिक रक्त विकार होने के बावजूद, अभी तक भी इस ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता है।

सभी प्रकार की विज्ञापन के लिए हमें इस नंबर 👉7415454656,पर संपर्क करें

Leave A Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Posts