रायपुर। आज रायपुर उत्तर विधायक पुरन्दर मिश्रा ने नुआखाई पर्व को लेकर मीडिया से चर्चा किया इसके बाद परिवार संग मंदिर में पूजा अर्चना कर आशीर्वाद लिया एवं समस्त प्रदेशवासियों के सुख-समृद्धि और खुशहाली की कामना की इस दौरान सभी लोगो को प्रसादी वितरण किया
नुआखाई ओडिशा का प्रमुख लोक पर्व है। यह पर्व पश्चिम ओडिशा के सीमाकतों छत्तीसगढ़ में भी मनाया जाता है। छत्तीसगढ़ के गरियाबंद, महासमुन्द, रायगढ़, जशपुर धमतरी सहित बस्तर सभाग के कुछ जिले भी इनमें शामिल है, जहीं पड़ोसी राज्य की तरह उत्कल संस्कृति से जुड़े लाकी लोग इसे पारम्परिक रीति-रिवाजों के साथ उलराह से मनाते हैं। नुआखाई भाद्रपद शुक्ल पंचमी के दिन मनाया जाता है। नुआखाई” का शाब्दिक अर्थ है नया खाना (भुजा नया, बाई खाना)। खेतों में खड़ी नई फसल के स्वागत में यह मुख्य रूप से ओडिशा के किसानों और खेतिहर श्रमिकों द्वारा मनाया जाने वाला पारम्परिक त्यौहार है, लेकिन समाज के सभी वर्ग इसे उत्साह के साथ मनाते हैं। जोग नुआखाई जुहार और भेटघाट के लिए एक-दूसरे के घर आते-जाते है। पहले यह त्यौहार भादों के शुक्ल पक्ष में अलग-अलग गाँवों में अलग-अलग तिथियों में सुविधानुसार मनाया जाता था। गाँव के मुख्य पुजारी इसके लिए तिथि और मुहूर्त तथ करते थे लेकिन अब नुआरवाई का दिन और समय सम्बलपुर स्थित जगन्नाथ मंदिर के मुजारा तय करते है। इस दिन गांवों में लोग अपने ग्राम देवता या ग्राम देवी की भी पूजा है। नुसारवाई के एक दिन पहले नहीं धान की बालियों के साथ युद्धा (विवड़ा) मूंग बौड परसा पाँ और पूजा के फूल वरीद लिए जाते हैं। रमईदेव ने लोगों के जीवन में स्थायित्व लाने के लिए उन्हें स्वावी खेती के लिए प्रोत्साहित करने की सोची और इसके लिए सार्मिक निधि-विधान के साथ नुआखाई पर्व मनाने की शुरुआत की। कालान्तर में गा. पश्चिम ओडिशा के लोक जीवन का एक प्रमुख पर्व बन गया। नये धान के चावल को पक्रांकन तरह-तरह के पारम्परिक व्यंजनों के साथ घरों में और सामूहिक रूप से भी फनामाज (नवान्नभोज) यानी नये अन्न का भोज बड़े चाव से किया जाता है। सबसे पाहत असाध्य देवी-देवताओं को मोग लगाया जाता है।
असाद ग्रहण करने के बाईक आगमन के पहले लोग अपने-अपने होता है। आधाई यौहार के साफ-सफाई और सिपाई-पुताई करके नई फसल के रूप में देवी अन्नपूर्णा के स्वागत की तैयारी करते हैं। गरिवार के सदस्यों के लिए नये कपड़े खरीदे जाते हैं। उड़िया लोग एक-दूसरे के परिवारों की नयान्ह भोज के आयोजन में स्नेहपूर्वक आमंत्रित करते हैं। इस विशेष अवसर के लिए लोग नये वस्त्री में सज-धातकर एक-दूसरे को नुआखाई जुहार करने आते-जाते हैं। मांगों से लेकर शहरी तक खूब चहल-पहल और खूब रौनक रहती है। सार्वजनिक आयोजनों में पश्चिम ओडिशा की लोक सस्कृति पर आधारित पारम्परिक लोक नृत्यों की घूम रहती है। इस त्यौहार का उद्देश्य सामाजिक बंधन का जश्न मनाना और पारिवारिक संबंधों को बढ़ावा देना है। यह दिन किसानों द्वारा गणेश चतुर्थी के एक दिन बाद मनाया जाता है। देश के विभिन्न भागों में रहने वाले लोग इस दिन अपने मूल स्थानों पर आते हैं और नए कपड़े पहनकर पूजा अर्चना करके तथा विशेष भोजन तैयार करके त्यौहार मनाते